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Шива-сутры Васугупты

«Осознанность — атман»,
«Осознанность — самость»,
«Consciousness is the Self» — все это переводы первой строки «Шива-сутр».

Столь лаконичное изложение требует пояснений. У текста есть два авторитетных комментария — Бхаскары и Кшемараджи.

На данной странице представлен текст самих сутр, комментарии можно скачать внизу страницы.

Перевод «Шива-сутр» вместе с комментарием Кшемараджи на английский язык можно найти на странице «Кашмирский Шиваизм».

Шива-сутры (санскр. शिवसूत्रा śivasūtrā) — один из основных текстов кашмирского шиваизма, принадлежащий к категории Агам и традиционно приписываемый мудрецу Васугупте.

शावाेपाय

चैतन्यमात्मा ॥ १॥

ज्ञानं बन्धः ॥ २॥

योनिवर्गः कलाशरीरम् ॥ ३॥

ज्ञानाधिष्ठानं मातृका ॥ ४॥

उद्यमो भैरवः ॥ ५॥

शक्तिचक्रसन्धाने विश्वसंहारः ॥ ६॥

जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिभेदे तुर्याभोग(संवित्)सम्भवः ॥ ७॥

ज्ञानं जाग्रत् ॥ ८॥

स्वप्नो विकल्पाः ॥ ९॥

अविवेको माया सौषुप्तम् ॥ १०॥

त्रितयभोक्ता वीरेशः ॥ ११॥

विस्मयो योगभूमिकाः ॥ १२॥

इच्छाशक्तिरुमा कुमारी ॥ १३॥

दृश्यं शरीरम् ॥ १४॥

हृदये चित्तसङ्घटाद्दृश्यस्वापदर्शनम् ॥ १५॥

शुद्धतत्त्वसन्धानाद्वापशौशक्तिः ॥ १६॥

वितर्क आत्मज्ञानम् ॥ १७॥

लोकानन्दः समाधिसुखम् ॥ १८॥

शक्तिसन्धाने शरीरोत्पत्तिः ॥ १९॥

भूतसन्धान-भूतपृथक्त्व-विश्वसङ्घट्टाः ॥ २०॥

शुद्धविद्योदयाच्च्क्रेशत्वसिद्धिः ॥ २१॥

महाह्रदानुसन्धानान्मन्त्रवीर्यानुभवः ॥ २२॥

śāmbhavopāya

caitanyamātmā ॥ 1॥

jñānaṃ bandhaḥ ॥ 2॥

yonivargaḥ kalāśarīram ॥ 3॥

jñānādhiṣṭhānaṃ mātṛkā ॥ 4॥

udyamo bhairavaḥ ॥ 5॥

śakticakrasandhāne viśvasaṃhāraḥ ॥ 6॥

jāgratsvapnasuṣuptibhede turyābhoga(saṃvit)sambhavaḥ ॥ 7॥

jñānaṃ jāgrat ॥ 8॥

svapno vikalpāḥ ॥ 9॥

aviveko māyā sauṣuptam ॥ 10॥

tritayabhoktā vīreśaḥ ॥ 11॥

vismayo yogabhūmikāḥ ॥ 12॥

icchāśaktirumā kumārī ॥ 13॥

dṛśyaṃ śarīram ॥ 14॥

hṛdaye cittasaṅghaṭāddṛśyasvāpadarśanam ॥ 15॥

śuddhatattvasandhānādvāpaśauśaktiḥ ॥ 16॥

vitarka ātmajñānam ॥ 17॥

lokānandaḥ samādhisukham ॥ 18॥

śaktisandhāne śarīrotpattiḥ ॥ 19॥

bhūtasandhāna-bhūtapṛthaktva-viśvasaṅghaṭṭāḥ ॥ 20॥

śuddhavidyodayācckreśatvasiddhiḥ ॥ 21॥

mahāhradānusandhānānmantravīryānubhavaḥ ॥ 22॥

२ शाक्तोपाय

चित्तं मन्त्रः ॥ १॥

प्रयत्नः साधकः ॥ २॥

विद्याशरीरसत्ता मन्त्ररहस्यम् ॥ ३॥

गर्भे चित्तविकासोऽविशिष्टविद्यास्वप्नः ॥ ४॥

विद्यासमुत्थाने स्वाभाविके खेचरी शिवावस्था ॥ ५॥

गुरुरुपायः ॥ ६॥

मातृकाचक्रसम्बोधः ॥ ७॥

शरीरं हविः ॥ ८॥

ज्ञानमन्नम् ॥ ९॥

विद्यासंहारे तदुत्थस्वप्नदर्शनम् ॥ १०॥

2 śāktopāya

cittaṃ mantraḥ ॥ 1॥

prayatnaḥ sādhakaḥ ॥ 2॥

vidyāśarīrasattā mantrarahasyam ॥ 3॥

garbhe cittavikāso’viśiṣṭavidyāsvapnaḥ ॥ 4॥

vidyāsamutthāne svābhāvike khecarī śivāvasthā ॥ 5॥

gururupāyaḥ ॥ 6॥

mātṛkācakrasambodhaḥ ॥ 7॥

śarīraṃ haviḥ ॥ 8॥

jñānamannam ॥ 9॥

vidyāsaṃhāre tadutthasvapnadarśanam ॥ 10॥

३ आणवोपाय

आत्मा चित्तम् ॥ १॥

ज्ञानं बन्धः ॥ २॥

कलादिनां तत्त्वानामविवेको माया ॥ ३॥

शरीरं संहारः कलानाम् ॥ ४॥

नाडीसंहार-भूतजय-भूतकैवल्य-भूतपृथक्त्वानि ॥ ५॥

मोहावरणात्सिद्धिः ॥ ६॥

मोहजयादनन्ताभोगात्शजविद्याजयः ॥ ७॥

जाग्रद्द्वितीयकरः ॥ ८॥

नर्तक आत्मा ॥ ९॥

रङ्गोऽन्तरात्मा ॥ १०॥

प्रेक्षकाणीन्द्रियाणि ॥ ११॥

धीवशात्सत्त्वसिद्धिः ॥ १२॥

सिद्धः स्वतन्त्रभावः ॥ १३॥

यथातत्र तथान्यत्र ॥ १४॥

बीजावधानम् ॥ १५॥

आसनस्थो सुखं ह्रदे निमज्जति ॥ १६॥

स्वमात्रनिर्माणमापादयति ॥ १७॥

विद्याविनाशे जन्मविनाशः ॥ १८॥

कवर्गादिषु माहेश्वर्याद्याः पशुमातरः ॥ १९॥

त्रिषु चतुर्थं तैलवदासेच्यम् ॥ २०॥

मग्नः स्वचित्तेन प्रविशेत् ॥ २१॥

प्राणसमाचारे समदर्शनम् ॥ २२॥

मध्येऽवरः प्रसवः ॥ २३॥

मात्रावप्रत्ययसन्धाने नष्टस्य पुनरुत्थानम् ॥ २४॥

शिवतुल्यो जायते ॥ २५॥

हरीरवृत्तिर्व्रतम् ॥ २६॥

कथा जपः ॥ २७॥

दानमात्मज्ञानम् ॥ २८॥

योऽविपस्थो ज्ञाहेतुश्च ॥ २९॥

स्वशक्तिप्रचयो विश्वम् ॥ ३०॥

स्थितिलयौ ॥ ३१॥

तत्प्रवृत्तावप्यनिरासः संवेतृभावात् ॥ ३२॥

सुखासुखयोर्बहिर्मननम् ॥ ३३॥

तद्विमुक्तस्तु केवली ॥ ३४॥

मोहप्रतिसंहतस्तु कर्मात्मा ॥ ३५॥

भेदतिरस्कारे सर्गान्तरकर्मत्वम् ॥ ३६॥

करणशक्तिः स्वतोऽनुभवात् ॥ ३७॥

त्रिपदाद्यनुप्राणनम् ॥ ३८॥

चित्तस्थितिवच्छरीरकरणबाह्येषु ॥ ३९॥

अभिलाषद्बहिर्गतिः संवाह्यस्य ॥ ४०॥

तदारूढप्रमितेस्तत्क्षयाज्जीवसंक्षयः ॥ ४१॥

भूतकञ्चुकी तदा विमुक्तो भूयः पतिसमः परः ॥ ४२॥

नैसर्गिकः प्राणसम्बन्धः ॥ ४३॥

नासिकान्तर्मध्यसंयमात्किमत्र सव्यापसव्यसौषुम्णेषु ॥४४॥

भूयः स्यात्प्रतिमीलनम् ॥ ४५॥

इति

3 āṇavopāya

ātmā cittam ॥ 1॥

jñānaṃ bandhaḥ ॥ 2॥

kalādināṃ tattvānāmaviveko māyā ॥ 3॥

śarīraṃ saṃhāraḥ kalānām ॥ 4॥

nāḍīsaṃhāra-bhūtajaya-bhūtakaivalya-bhūtapṛthaktvāni ॥ 5॥

mohāvaraṇātsiddhiḥ ॥ 6॥

mohajayādanantābhogātśajavidyājayaḥ ॥ 7॥

jāgraddvitīyakaraḥ ॥ 8॥

nartaka ātmā ॥ 9॥

raṅgo’ntarātmā ॥ 10॥

prekṣakāṇīndriyāṇi ॥ 11॥

dhīvaśātsattvasiddhiḥ ॥ 12॥

siddhaḥ svatantrabhāvaḥ ॥ 13॥

yathātatra tathānyatra ॥ 14॥

bījāvadhānam ॥ 15॥

āsanastho sukhaṃ hrade nimajjati ॥ 16॥

svamātranirmāṇamāpādayati ॥ 17॥

vidyāvināśe janmavināśaḥ ॥ 18॥

kavargādiṣu māheśvaryādyāḥ paśumātaraḥ ॥ 19॥

triṣu caturthaṃ tailavadāsecyam ॥ 20॥

magnaḥ svacittena praviśet ॥ 21॥

prāṇasamācāre samadarśanam ॥ 22॥

madhye’varaḥ prasavaḥ ॥ 23॥

mātrāvapratyayasandhāne naṣṭasya punarutthānam ॥ 24॥

śivatulyo jāyate ॥ 25॥

harīravṛttirvratam ॥ 26॥

kathā japaḥ ॥ 27॥

dānamātmajñānam ॥ 28॥

yo’vipastho jñāhetuśca ॥ 29॥

svaśaktipracayo viśvam ॥ 30॥

sthitilayau ॥ 31॥

tatpravṛttāvapyanirāsaḥ saṃvetṛbhāvāt ॥ 32॥

sukhāsukhayorbahirmananam ॥ 33॥

tadvimuktastu kevalī ॥ 34॥

mohapratisaṃhatastu karmātmā ॥ 35॥

bhedatiraskāre sargāntarakarmatvam ॥ 36॥

karaṇaśaktiḥ svato’nubhavāt ॥ 37॥

tripadādyanuprāṇanam ॥ 38॥

cittasthitivaccharīrakaraṇabāhyeṣu ॥ 39॥

abhilāṣadbahirgatiḥ saṃvāhyasya ॥ 40॥

tadārūḍhapramitestatkṣayājjīvasaṃkṣayaḥ ॥ 41॥

bhūtakañcukī tadā vimukto bhūyaḥ patisamaḥ paraḥ ॥ 42॥

naisargikaḥ prāṇasambandhaḥ ॥ 43॥

nāsikāntarmadhyasaṃyamātkimatra savyāpasavyasauṣumṇeṣu ॥44॥

bhūyaḥ syātpratimīlanam ॥ 45॥

iti

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