शावाेपाय
चैतन्यमात्मा ॥ १॥
ज्ञानं बन्धः ॥ २॥
योनिवर्गः कलाशरीरम् ॥ ३॥
ज्ञानाधिष्ठानं मातृका ॥ ४॥
उद्यमो भैरवः ॥ ५॥
शक्तिचक्रसन्धाने विश्वसंहारः ॥ ६॥
जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिभेदे तुर्याभोग(संवित्)सम्भवः ॥ ७॥
ज्ञानं जाग्रत् ॥ ८॥
स्वप्नो विकल्पाः ॥ ९॥
अविवेको माया सौषुप्तम् ॥ १०॥
त्रितयभोक्ता वीरेशः ॥ ११॥
विस्मयो योगभूमिकाः ॥ १२॥
इच्छाशक्तिरुमा कुमारी ॥ १३॥
दृश्यं शरीरम् ॥ १४॥
हृदये चित्तसङ्घटाद्दृश्यस्वापदर्शनम् ॥ १५॥
शुद्धतत्त्वसन्धानाद्वापशौशक्तिः ॥ १६॥
वितर्क आत्मज्ञानम् ॥ १७॥
लोकानन्दः समाधिसुखम् ॥ १८॥
शक्तिसन्धाने शरीरोत्पत्तिः ॥ १९॥
भूतसन्धान-भूतपृथक्त्व-विश्वसङ्घट्टाः ॥ २०॥
शुद्धविद्योदयाच्च्क्रेशत्वसिद्धिः ॥ २१॥
महाह्रदानुसन्धानान्मन्त्रवीर्यानुभवः ॥ २२॥
śāmbhavopāya
caitanyamātmā ॥ 1॥
jñānaṃ bandhaḥ ॥ 2॥
yonivargaḥ kalāśarīram ॥ 3॥
jñānādhiṣṭhānaṃ mātṛkā ॥ 4॥
udyamo bhairavaḥ ॥ 5॥
śakticakrasandhāne viśvasaṃhāraḥ ॥ 6॥
jāgratsvapnasuṣuptibhede turyābhoga(saṃvit)sambhavaḥ ॥ 7॥
jñānaṃ jāgrat ॥ 8॥
svapno vikalpāḥ ॥ 9॥
aviveko māyā sauṣuptam ॥ 10॥
tritayabhoktā vīreśaḥ ॥ 11॥
vismayo yogabhūmikāḥ ॥ 12॥
icchāśaktirumā kumārī ॥ 13॥
dṛśyaṃ śarīram ॥ 14॥
hṛdaye cittasaṅghaṭāddṛśyasvāpadarśanam ॥ 15॥
śuddhatattvasandhānādvāpaśauśaktiḥ ॥ 16॥
vitarka ātmajñānam ॥ 17॥
lokānandaḥ samādhisukham ॥ 18॥
śaktisandhāne śarīrotpattiḥ ॥ 19॥
bhūtasandhāna-bhūtapṛthaktva-viśvasaṅghaṭṭāḥ ॥ 20॥
śuddhavidyodayācckreśatvasiddhiḥ ॥ 21॥
mahāhradānusandhānānmantravīryānubhavaḥ ॥ 22॥
२ शाक्तोपाय
चित्तं मन्त्रः ॥ १॥
प्रयत्नः साधकः ॥ २॥
विद्याशरीरसत्ता मन्त्ररहस्यम् ॥ ३॥
गर्भे चित्तविकासोऽविशिष्टविद्यास्वप्नः ॥ ४॥
विद्यासमुत्थाने स्वाभाविके खेचरी शिवावस्था ॥ ५॥
गुरुरुपायः ॥ ६॥
मातृकाचक्रसम्बोधः ॥ ७॥
शरीरं हविः ॥ ८॥
ज्ञानमन्नम् ॥ ९॥
विद्यासंहारे तदुत्थस्वप्नदर्शनम् ॥ १०॥
2 śāktopāya
cittaṃ mantraḥ ॥ 1॥
prayatnaḥ sādhakaḥ ॥ 2॥
vidyāśarīrasattā mantrarahasyam ॥ 3॥
garbhe cittavikāso’viśiṣṭavidyāsvapnaḥ ॥ 4॥
vidyāsamutthāne svābhāvike khecarī śivāvasthā ॥ 5॥
gururupāyaḥ ॥ 6॥
mātṛkācakrasambodhaḥ ॥ 7॥
śarīraṃ haviḥ ॥ 8॥
jñānamannam ॥ 9॥
vidyāsaṃhāre tadutthasvapnadarśanam ॥ 10॥
३ आणवोपाय
आत्मा चित्तम् ॥ १॥
ज्ञानं बन्धः ॥ २॥
कलादिनां तत्त्वानामविवेको माया ॥ ३॥
शरीरं संहारः कलानाम् ॥ ४॥
नाडीसंहार-भूतजय-भूतकैवल्य-भूतपृथक्त्वानि ॥ ५॥
मोहावरणात्सिद्धिः ॥ ६॥
मोहजयादनन्ताभोगात्शजविद्याजयः ॥ ७॥
जाग्रद्द्वितीयकरः ॥ ८॥
नर्तक आत्मा ॥ ९॥
रङ्गोऽन्तरात्मा ॥ १०॥
प्रेक्षकाणीन्द्रियाणि ॥ ११॥
धीवशात्सत्त्वसिद्धिः ॥ १२॥
सिद्धः स्वतन्त्रभावः ॥ १३॥
यथातत्र तथान्यत्र ॥ १४॥
बीजावधानम् ॥ १५॥
आसनस्थो सुखं ह्रदे निमज्जति ॥ १६॥
स्वमात्रनिर्माणमापादयति ॥ १७॥
विद्याविनाशे जन्मविनाशः ॥ १८॥
कवर्गादिषु माहेश्वर्याद्याः पशुमातरः ॥ १९॥
त्रिषु चतुर्थं तैलवदासेच्यम् ॥ २०॥
मग्नः स्वचित्तेन प्रविशेत् ॥ २१॥
प्राणसमाचारे समदर्शनम् ॥ २२॥
मध्येऽवरः प्रसवः ॥ २३॥
मात्रावप्रत्ययसन्धाने नष्टस्य पुनरुत्थानम् ॥ २४॥
शिवतुल्यो जायते ॥ २५॥
हरीरवृत्तिर्व्रतम् ॥ २६॥
कथा जपः ॥ २७॥
दानमात्मज्ञानम् ॥ २८॥
योऽविपस्थो ज्ञाहेतुश्च ॥ २९॥
स्वशक्तिप्रचयो विश्वम् ॥ ३०॥
स्थितिलयौ ॥ ३१॥
तत्प्रवृत्तावप्यनिरासः संवेतृभावात् ॥ ३२॥
सुखासुखयोर्बहिर्मननम् ॥ ३३॥
तद्विमुक्तस्तु केवली ॥ ३४॥
मोहप्रतिसंहतस्तु कर्मात्मा ॥ ३५॥
भेदतिरस्कारे सर्गान्तरकर्मत्वम् ॥ ३६॥
करणशक्तिः स्वतोऽनुभवात् ॥ ३७॥
त्रिपदाद्यनुप्राणनम् ॥ ३८॥
चित्तस्थितिवच्छरीरकरणबाह्येषु ॥ ३९॥
अभिलाषद्बहिर्गतिः संवाह्यस्य ॥ ४०॥
तदारूढप्रमितेस्तत्क्षयाज्जीवसंक्षयः ॥ ४१॥
भूतकञ्चुकी तदा विमुक्तो भूयः पतिसमः परः ॥ ४२॥
नैसर्गिकः प्राणसम्बन्धः ॥ ४३॥
नासिकान्तर्मध्यसंयमात्किमत्र सव्यापसव्यसौषुम्णेषु ॥४४॥
भूयः स्यात्प्रतिमीलनम् ॥ ४५॥
इति
3 āṇavopāya
ātmā cittam ॥ 1॥
jñānaṃ bandhaḥ ॥ 2॥
kalādināṃ tattvānāmaviveko māyā ॥ 3॥
śarīraṃ saṃhāraḥ kalānām ॥ 4॥
nāḍīsaṃhāra-bhūtajaya-bhūtakaivalya-bhūtapṛthaktvāni ॥ 5॥
mohāvaraṇātsiddhiḥ ॥ 6॥
mohajayādanantābhogātśajavidyājayaḥ ॥ 7॥
jāgraddvitīyakaraḥ ॥ 8॥
nartaka ātmā ॥ 9॥
raṅgo’ntarātmā ॥ 10॥
prekṣakāṇīndriyāṇi ॥ 11॥
dhīvaśātsattvasiddhiḥ ॥ 12॥
siddhaḥ svatantrabhāvaḥ ॥ 13॥
yathātatra tathānyatra ॥ 14॥
bījāvadhānam ॥ 15॥
āsanastho sukhaṃ hrade nimajjati ॥ 16॥
svamātranirmāṇamāpādayati ॥ 17॥
vidyāvināśe janmavināśaḥ ॥ 18॥
kavargādiṣu māheśvaryādyāḥ paśumātaraḥ ॥ 19॥
triṣu caturthaṃ tailavadāsecyam ॥ 20॥
magnaḥ svacittena praviśet ॥ 21॥
prāṇasamācāre samadarśanam ॥ 22॥
madhye’varaḥ prasavaḥ ॥ 23॥
mātrāvapratyayasandhāne naṣṭasya punarutthānam ॥ 24॥
śivatulyo jāyate ॥ 25॥
harīravṛttirvratam ॥ 26॥
kathā japaḥ ॥ 27॥
dānamātmajñānam ॥ 28॥
yo’vipastho jñāhetuśca ॥ 29॥
svaśaktipracayo viśvam ॥ 30॥
sthitilayau ॥ 31॥
tatpravṛttāvapyanirāsaḥ saṃvetṛbhāvāt ॥ 32॥
sukhāsukhayorbahirmananam ॥ 33॥
tadvimuktastu kevalī ॥ 34॥
mohapratisaṃhatastu karmātmā ॥ 35॥
bhedatiraskāre sargāntarakarmatvam ॥ 36॥
karaṇaśaktiḥ svato’nubhavāt ॥ 37॥
tripadādyanuprāṇanam ॥ 38॥
cittasthitivaccharīrakaraṇabāhyeṣu ॥ 39॥
abhilāṣadbahirgatiḥ saṃvāhyasya ॥ 40॥
tadārūḍhapramitestatkṣayājjīvasaṃkṣayaḥ ॥ 41॥
bhūtakañcukī tadā vimukto bhūyaḥ patisamaḥ paraḥ ॥ 42॥
naisargikaḥ prāṇasambandhaḥ ॥ 43॥
nāsikāntarmadhyasaṃyamātkimatra savyāpasavyasauṣumṇeṣu ॥44॥
bhūyaḥ syātpratimīlanam ॥ 45॥
iti
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